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Tuesday, 1 November 2011

Omar relieved as court rejects petition for CBI probe in J&K Yusuf case

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यूसुफ़ मामले में सीबीआई जाँच की अर्जी खारिज 


क्लीन मीडिया संवाददाता 
श्रीनगर, एक नवम्बर (सीएमसी) : भ्रष्टाचार निरोधक विशेष अदालत ने जम्मू कश्मीर के कई प्रमुख राजनीतिज्ञों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने संबंधी याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। यह याचिका पिछले महीने पुलिस हिरासत में एक राजनीतिक कार्यकर्ता की मौत के बाद दायर की गई थी।
   भ्रष्टाचार निरोधक विशेष अदालत के न्यायाधीश मोहम्मद यूसुफ अखून ने अपने आदेश में कहा कि इस समय सीबीआई अथवा राज्य जांच एजेंसियों को आरोपों की जांच संबंधी निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है। याचिका खारिज करते हुए न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया जिनमें हाईकोर्ट को छोडकर अन्य निचली अदालतों को आरोपों की जांच के लिए सीबीआई को निर्देश देने पर रोक लगाई गई है।
  नेशनल कांफ्रेंस के दिवंगत कार्यकर्ता सैयद मोहम्मद यूसुफ के बेटे सैयद तालिब ने भ्रष्टाचार निरोधक विशेष अदालत में याचिका दायर कर हिरासत में राजनीतिक कार्यकर्ता की मौत के सिलसिले में हत्या का मामला दर्ज करने और इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी। आवेदक मुश्ताक अहमद डार के वकील ने दलील दी थी कि दिवंगत कार्यकर्ता का पुत्र (आवेदक) अदालत से कानून के तहत सीबीआई या किसी अन्य राज्य एजेंसी द्वारा मामला दर्ज करने के निर्देश चाहता है। पिछले सप्ताह जिरह के दौरान अधिवक्ता ने यह भी कहा था कि अगर अदालत इस मामले में सीबीआई जांच के पक्ष में नहीं है तो गुप्तचर संगठन से भी जांच कराई जा सकती है।
 अधिवक्ता ने कहा कि चूंकि नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला सहित कई शीर्ष नेताओं के नाम चश्मदीद अब्दुल सलाम रेशी के पैसे के लेनदेन संबंधी आरोपों में सामने आए हैं, इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए। अब्दुल्ला ने इन आरोपों को खारिज किया है। हिरासत में हुई मौत के बाद राज्य में राजनीतिक भूचाल आ गया था, जिसके बाद रेशी ने आरोप लगाए थे कि यूसुफ ने उससे और एक अन्य एनसी कार्यकर्ता मोहम्मद यूसुफ भट से राज्य विधान परिषद में सीट दिलाने के लिए पैसा लिया था।
 अब्दुल्ला ने इस बात से इनकार किया कि वह या उनकी पार्टी धन के लेनदेन में शामिल है। उन्होंने लोगों से कहा कि वह हिरासत में मौत संबंधी मामले की न्यायिक जांच के नतीजों का इंतजार करें। न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि मजिस्ट्रियल शक्तियां पुलिस थाने के जांच अधिकारियों से अधिक नहीं खींची जा सकती।

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