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Friday, 18 November 2011

Haqqani denies having asked for political asylum in US

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अमेरिका में नहीं मांग रहा शरण - हक्कानी 


क्लीन मीडिया संवाददाता 

वाशिंगटन/इस्लामाबाद, 18 नवम्बर (सीएमसी) :  अमेरिका में शरण मांगने की खबरों को लेकर विवादों में घिरे पाकिस्तानी कूटनीतिक हुसैन हक्कानी ने कहा कि वह वाशिंगटन में शरण नहीं मांग रहे हैं और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा ओबामा प्रशासन को भेजे गए कथित गुप्त मेमो के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए वह जल्द ही अपने देश जाएंगे.
अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत हक्कानी ने इन खबरों का साफ खंडन किया कि एक दिन पहले जरदारी को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद उन्होंने अमेरिका में शरण मांगी है.
हक्कानी ने एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में इन खबरों के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘मैं एक पाकिस्तानी हूं और मरते तक पाकिस्तानी ही रहूंगा.’ उन्होंने कहा, ‘मैं कई सालों से नागरिकता लिए बिना अमेरिका में रह रहा हूं और इसका कारण यह है कि मैं पाकिस्तान से बहुत प्यार करता हूं.’
राजदूत ने हालांकि यह बताया कि उन्होंने जरदारी से अपने इस्तीफे की पेशकश की थी लेकिन इसे अभी स्वीकार नहीं किया गया है. मीडिया की खबरों में जब गोपनीय ज्ञापन (मेमो) का जिक्र किया गया और कहा गया कि प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने उन्हें उनका रूख स्पष्ट करने के लिए बुलाया है तो हक्कानी विवादों के केंद्र में आ गए.
हक्कानी ने एक पाकिस्तानी टेलीविजन के कार्यक्रम में कहा, ‘मैं राष्ट्रपति जरदारी के आदेश पर पाकिस्तान आ रहा हूं. राष्ट्रपति को पूरी स्थिति से अवगत कराने के लिए लौटने से पहले, मैंने उन्हें एक पत्र लिखा है कि मुझे नौकरी की जरूरत नहीं है. यह जवाबदारी मैंने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के आदेश पर ली थी.’
उन्होंने कहा, ‘मैं एक या दो दिन में पाकिस्तान पहुंच रहा हूं.’ हक्कानी अभी भी वाशिंगटन में हैं और अमेरिका में अपने देश के शीर्ष कूटनीतिक के तौर पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने देश के इतिहास में निभाने के लिए भूमिका मांगी. मैंने इसे काम के तौर पर नहीं मांगा. मैं यह जिम्मेदारी निभाता रहूंगा लेकिन वर्तमान स्थिति को शांत करने के लिए मैंने अपने इस्तीफे की पेशकश की है. कुछ मुट्ठी भर पत्रकारों ने किसी के कहने पर बातों को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर दिया है.’
पत्रकार, शोधार्थी और अब कूटनीतिक हक्कानी का संकेत पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी उद्योगपति मंसूर इजाज की ओर था जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि जरदारी ने एक अज्ञात कूटनीतिक (कई लोगों के अनुसार हक्कानी) के माध्यम से ऐबटाबाद की घटना के बाद सेना को पाकिस्तान सरकार का नियंत्रण पूरी तरह लेने से रोकने के लिए अमेरिका की मदद लेने की कोशिश की.

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