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चालीस साल से लटका हुआ है लोकपाल विधेयक
क्लीन मीडिया संवाददाता
नई दिल्ली, 30 दिसम्बर (सीएमसी) : गुरुवार दिनभर चली चर्चा के बाद भी राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित नहीं होने का यह पहला मामला नहीं है। 40 वर्ष का संसद का इतिहास गवाह है कि यह विधेयक एक पहेली बना हुआ है।
गुरुवार रात राज्यसभा की कार्यवाही बिना लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 पारित हुए अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। रोचक संयोग यह है कि अब तक जब भी संसद में लोकपाल विधेयक पर विचार हुआ लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो चुकी थी।
1968 से ऐसा ही देखने में आया है। उस साल नौ मई को लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पेश किया गया था। इसे संसद की स्थाई समिति को भेजा गया।
20 अगस्त, 1969 को यह ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 1969’ के रूप में पारित हुआ। हालांकि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होता उससे पहले चौथी लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी और विधेयक लटक गया।
इसके बाद 11 अगस्त, 1971 को एक बार फिर लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक लाया गया। इसे ना तो किसी समिति को भेजा गया और ना ही किसी सदन ने इसे पारित किया। पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह निष्प्रभावी हो गया।
उसके बाद 28 जुलाई, 1977 को लोकपाल विधेयक को लाया गया। इसे संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजा गया। संयुक्त समिति की सिफारिशों पर विचार करने से पहले ही छठी लोकसभा स्थगित हो गयी और विधेयक भी लटक गया। लोकपाल विधेयक, 1985 को उस साल 28 अगस्त को पेश किया गया और संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया। हालांकि तत्कालीन सरकार ने अनेक किस्म के हालात को कवर करने में खामियों के चलते उसे वापस ले लिया।
विधेयक को वापस लेते हुए तत्कालीन सरकार ने कहा कि वह जनता की शिकायतों के निवारण के साथ बाद में एक व्यापक विधेयक लेकर आएगी।
वर्ष 1989 में यह विधेयक फिर आया और 29 दिसंबर को उसे पेश किया गया। हालांकि 13 मार्च 1991 को नौवीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद विधेयक निष्प्रभावी हो गया।
संयुक्त मोर्चा की सरकार ने भी 13 सितंबर, 1996 को एक और विधेयक पेश किया था। उसे जांच और रिपोर्ट देने के लिए विभाग से संबंधित गृह मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति को भेजा गया। स्थाई समिति ने नौ मई, 1997 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की और इसके अनेक प्रावधानों में व्यापक संशोधन किये।
सरकार स्थाई समिति की अनेक सिफारिशों पर अपना रुख तय करती तब तक 11वीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी।
पिछला ऐसा प्रयास 14 अगस्त, 2001 को भाजपा नीत राजग सरकार की ओर से किया गया था। उसे गृह मामलों की विभाग से संबंधित संसदीय स्थाई समिति को अध्ययन और रिपोर्ट देने के लिए भेजा गया लेकिन राजग मई 2004 में सत्ता से बाहर हो गया।
चालीस साल से लटका हुआ है लोकपाल विधेयक
क्लीन मीडिया संवाददाता
नई दिल्ली, 30 दिसम्बर (सीएमसी) : गुरुवार दिनभर चली चर्चा के बाद भी राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित नहीं होने का यह पहला मामला नहीं है। 40 वर्ष का संसद का इतिहास गवाह है कि यह विधेयक एक पहेली बना हुआ है।
गुरुवार रात राज्यसभा की कार्यवाही बिना लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 पारित हुए अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। रोचक संयोग यह है कि अब तक जब भी संसद में लोकपाल विधेयक पर विचार हुआ लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो चुकी थी।
1968 से ऐसा ही देखने में आया है। उस साल नौ मई को लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पेश किया गया था। इसे संसद की स्थाई समिति को भेजा गया।
20 अगस्त, 1969 को यह ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 1969’ के रूप में पारित हुआ। हालांकि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होता उससे पहले चौथी लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी और विधेयक लटक गया।
इसके बाद 11 अगस्त, 1971 को एक बार फिर लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक लाया गया। इसे ना तो किसी समिति को भेजा गया और ना ही किसी सदन ने इसे पारित किया। पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह निष्प्रभावी हो गया।
उसके बाद 28 जुलाई, 1977 को लोकपाल विधेयक को लाया गया। इसे संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजा गया। संयुक्त समिति की सिफारिशों पर विचार करने से पहले ही छठी लोकसभा स्थगित हो गयी और विधेयक भी लटक गया। लोकपाल विधेयक, 1985 को उस साल 28 अगस्त को पेश किया गया और संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया। हालांकि तत्कालीन सरकार ने अनेक किस्म के हालात को कवर करने में खामियों के चलते उसे वापस ले लिया।
विधेयक को वापस लेते हुए तत्कालीन सरकार ने कहा कि वह जनता की शिकायतों के निवारण के साथ बाद में एक व्यापक विधेयक लेकर आएगी।
वर्ष 1989 में यह विधेयक फिर आया और 29 दिसंबर को उसे पेश किया गया। हालांकि 13 मार्च 1991 को नौवीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद विधेयक निष्प्रभावी हो गया।
संयुक्त मोर्चा की सरकार ने भी 13 सितंबर, 1996 को एक और विधेयक पेश किया था। उसे जांच और रिपोर्ट देने के लिए विभाग से संबंधित गृह मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति को भेजा गया। स्थाई समिति ने नौ मई, 1997 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की और इसके अनेक प्रावधानों में व्यापक संशोधन किये।
सरकार स्थाई समिति की अनेक सिफारिशों पर अपना रुख तय करती तब तक 11वीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी।
पिछला ऐसा प्रयास 14 अगस्त, 2001 को भाजपा नीत राजग सरकार की ओर से किया गया था। उसे गृह मामलों की विभाग से संबंधित संसदीय स्थाई समिति को अध्ययन और रिपोर्ट देने के लिए भेजा गया लेकिन राजग मई 2004 में सत्ता से बाहर हो गया।
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